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Alliance of Indian Wastepickers newsletter

AIW Newsletter: May 2012

Index of contents
पुणे :स्थानीय पहल,वैशिवक सहभागिता

   - शहरी स्थानीय निकायों से परामर्श
   - ए आर्इ डब्ल्यू का दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलन।
   - कचरा बीनने वालों की वैशिवक सामरिक का र्यशाला(ग्लोबल स्ट्रेटजिक वर्कशाप)
पेंशन: एक अधिकार है,कृपा नहीं!
गाजीपुररू में कचरे से ऊर्जा .. लगाने का विरोध।
बस्ते को 'हाँ, बोरे को 'नहीं!
यूरोप में भारतीय कचरा बीनने वाले अपनी दशा बताते हुए--

पुणे :स्थानीय पहल,वैशिवक सहभागिता

स्वच्छ व कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत द्वारा पुणे में हाल ही में आयोजित 3 महत्वपूर्ण सम्मेलनों की कड़ी में भारत, एशिया ,लैटिन अमेरीका व यूरोप के कचरा बीनने वालों ,एकिटविस्ट व नीति निर्माताओं ने एक जीवंत मैत्रीपूर्ण वातावरण में अपने अनुभवों व विचारों का आदान-प्रदान किया।

  • 24-25 अप्रैल 2012 ठो क प्र में कचरा बीनने वालों को समावेशित करने के विषय में शहरी स्थानीय निकायों में सलाह मशविरा।
  • 25- 26 अप्रैल 2012 ए आर्इ डब्ल्यू का दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलन।
  • 27-29 अप्रैल 2012 कचरा बीनने वालों का वैशिवक सामरिक कार्यशाला(ग्लोबल स्ट्रेटजिक वर्कशाप)

इन तीनों सम्मेलनों के दौरान प्रतिनिधियों ने स्वच्छ व कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत द्वारा उठाए गए कदमों का अवलोकन किया , विभिन्न देशों में प्रयुक्त उपायों व प्रणालियों पर चर्चा की , नपा अधिकारियों से विचारों का आदान-प्रदान किया, दुनिया भर में कचरा बीनने वालों के लिए समाज का सहयोग किस प्रकार हासिल किया जाए-इस पर भी विचार किया।

सबसे बड़ी बात यह कि इन सबने भाषा व संस्कृति की सीमाओं को लांघकर मित्रताएँ स्थापित की।।

शहरी स्थानीय निकायों से परामर्श (24- 25 अप्रैल 2012)

ए आर्इ डब्ल्यू द्वारा आयोजित आपसी परामर्श से इस एक सप्ताह का कामकाज आरंभ हुआ। इसका लक्ष्य है -ठोस कचरा प्रबंधन के लिए प्रभावकारी व समावेशित माडलों का प्रदर्शन करना व उनको प्रोत्साहित करना। शहरी स्थानीय निकायों द्वारा इन्हें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना भी इसका लक्ष्य था।

भारत के 17 शहरी स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि ,सरकार के प्रतिनिधि व इंडोनेशिया व नेपाल से एक-एक शहरी स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए।

प्रतिभागियों ने ठोस कचरा प्रबंधन . में जो स्थानीय पहल हुए हैं,उनपर चर्चा की, उनसे संबंधित कानून व नीतियाँ क्या हों जोकि ठोस कचरा प्रबंधन में कचरा बीनने वालों को समाविष्ट कर सकें। जैसे कि बंगलौर व पिंपरी-चिंचावड़ -दोनों जगहों के प्रतिनिधियों ने कचरा बीनने वालों को पंजीकृत कर उन्हें पहचान पत्र देने के अपने अनुभव बताए।कुछ ने बताया कि प्लासिटक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाने व लैंडफिल तक सबकी पहुँच निषिद्ध कर देने से कबीवा की कमार्इ पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है।कुछ ने अपने निजी अनुभव बताए ,जैसे कि लैटिन अमेरीका में 'वैशिवक कचरा की समन्वयक लुशिया फर्नांडिस ने कहा कि ठोस कचरा प्रबंधन में कचरा बीनने वालों की समावेशिता के लिए 3 कदम उठाने अनिवार्य हैं- एक) आपस में तय किया गया एक विधायी ढाँचा, 2) राजनीतिक इच्छा शकित निर्मित करने के लिए वकालत व उसे गति देना, और 3) कचरा बीनने वालों को संगठित करने की अनिवार्यता।

सत्र की समापित प्रश्नोत्तर से हुर्इ व पुणे महानगरपालिका निगम द्वारा पिंपरी चिंचावड़ में चलाए जा रहे स्वच्छ के कार्य का अवलोकन किया गया।

ए आर्इ डब्ल्यू का दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलन।25- 26 अप्रैल 2012

20 शहरों के लगभग 300 कचरा बीनने वाले जोकि 29 संगठनों का प्रतिनिधित्व करते थे -इसमें समिमलित हुए। पुणे शहर के स्थानीय कचरा बीनने वाले भी आए। पुणे के वैशिवक सम्मेलन में आए 20 देशों के प रतिनिधि भी इसमें दर्शक की हैसियत से शामिल हुए। कचरा बीनने वालों इस राष्ट्रीय सम्मेलन का उश्य था -भारत के विभिन्न भागों से आए कचरा बीनने वालों के बीच विचारों व अनुभवों का आदान-प्रदान।

स्वच्छ व कागज़ कच पतरा कष्टकरी पंचायत का कार्य देखने के बाद प्रतिभागियों ने कहा कि पुणे के कचरा बीनने वालों को रहवासियों,अधिकारियों च अन्य लोगों का जो आदर मिल रहा है ,वह उल्लेखनीय है।उन्हें लगा कि यह एक व्यावहारिक माडल है व सरलता से इसका अनुकरण किया जा सकता है। स्वच्छ ने पुणे में सफलतापूर्वक इसे करके यह दर्शा दिया है कि एक समावेशित ठोस कचरा प्रणाली को कि्रयानिवत करना संभव है।उन्होंने स्वच्छ द्वारा कचरा बीनने वालों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए सरकार के साथ हो रही बातचीत की भी प्रशंसा की। राष्ट्रीय सम्मेलन से जो प्रमुख विचारणीय बिंदु उभरे वे इस प्रकार हैं-

  • खराब तरीके से कि्रयानिवत ठोस कचरा प्रबंधन के कारण कचरे तक कचरा बीनने वालों की पहुँच कम होती है,कचरा बीनने के काम का निजीकरण ,भस्मक प्रौधोगिकी का आरंभ होना, इन सबसे कचरा बीनने वालों की आमदनी में कमी आती है।
  • नागरिकों से मासिक शुल्क उगाहने में कठिनार्इ आती है(कर्इ शहरों में आज भी कचरा बीनने का काम जाति विशेष का कत्र्तव्य माना जाता हैं न कि एक व्यावसायिक काम!)

जब ए आर्इ डब्ल्यू के आगामी वर्ष की योजना पर चर्चा हुर्इ तो बालश्रम के विरुद्ध अभियान, कचरा बीनने वालों के पंजीकरण का अभियान ,पेंशन आदि भी प्राथमिक मु थे।

सम्मेलन का समापन नाटक, विभिन्न प्रदर्शन ,संगीत व ड्रम सर्कल के साथ हुआ जिसमें 500 लोगों ने पुनर्चक्रण वाले कचरे से बने ड्रम पर समवेत संगीत प्रस्तुत किया।

कचरा बीनने वालों की वैशिवक सामरिक का कार्यशाला(ग्लोबल स्ट्रेटजिक वर्कशाप)27-29 अप्रैल 2012
कचरा बीनने वालों की वैशिवक सामरिक कार्यशाला में 26 देशों के प्रतिनिधि आए थे। जिन्होंने कचरा बीनने वालों के सामने खड़ी चुनौतियों पर च र्चा की। कचरा बीनने की सेवाओं का निजीकरण, बड़ी उधोग कंपनियों का प्रभाव जिन्हें अब कचरे व उसके पुनर्चक्रण की आर्थिक संभावनाएँ दिखने लगी हैं। ये पूरे विश्व में कचरा बीनने वालों समुदायों के लिए बहुत बड़ा खतरा है। एक और ज्वलंत समस्या है -भस्मीकरण की- कचरे को जलाना । इससे न केवल कचरा बीनने वालों के रोज़गार के लिए खतरा है बलिक पर्यावरण के लिए भी संकट है।

भस्मक विकल्पों के वैशिवक गठजोड़ के सदस्य नील टेंगरी का कहना है कि '''कचरे से ऊर्जा को एक समाधान की तरह सरकारों को बेचा जा रहा है मगर केवल काग ज़,कार्डबोर्ड व प्लासिटक ही जलेगा और वही चीज़ें पुनर्चक्रण के योग्य हैं।

सभी प्रतिनिधि स्वच्छ का काम देखने के लिए फील्ड में गए। घर-घर से कचरा उठाने का कार्य, पुनर्चक्रण सुविधाएँ, बायोगैस संयंत्र , कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत की दुकान व कचरा छाँटने का शेड -सब उन लागों ने देखा।

ग्लोबल स्ट्रेटजिक वर्कशाप का समापन एक सकारात्मक बिंदु पर हुआ जब 'शून्य कचरा वार्ड(कचरा रहित वार्ड) का उदघाटन 1 मर्इ श्रमिक दिवस व महाराष्ट्र दिवस पर हुआ। पिछले एक साल से स्वच्छ पुणे मनपानि के साथ व अन्य नागरिक समाज संगठनों के साथ एक शून्य कचरा वार्ड (कचरा रहित वार्ड) के निर्माण में लगा हुआ था। इसकी सफलता के आधार पर 15 और वार्डों को ऐसा ही बनाया जाएगा।

 

पुणे सम्मेलन के बाद:नेपाल : स्वच्छ माडल का अनुकरण

सृजना देवकोटा,पी ए नेपाल।

नेपाल में कार्यरत प्रेकिटकल एक्शन ( पी ए) संगठन ,नेपाल के प्रतिभागियों में शहरी स्थानीय निकाय कार्यशाला के संबंध में ये प्रतिकि्रया थी कि '' कार्यशाला में कचरा बीनने वालों की उपसिथति व उनमें दिख रही एकता की भावना से हमने बहुत कुछ सीखा। नेपाल सरकार के जिन प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया उन्होंने भी विभिन्न संगठनों से विचारों को साझा करने की प्रशंसा की व नेपाल में स्वच्छ के समावेशी माडल का अनुकरण करने की परियोजना आरंभ करने की सहमति जतार्इ। पी ए के प्रतिभागियों को कार्यशाला की सबसे उपयोगी बात यह लगी कि अनेक देशों से आए विभिन्न स्थानीय निकायों ,संगठनों से विचारों व अनुभवों का आदान-प्रदान हुआ जोकि इस क्षेत्र में कार्यरत हैं व स्वयं कचरा बीनने वालों से सीधे बातचीत हो पार्इ।

कार्य:- पी ए ने एक राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला की योजना बनार्इ है जिसमें वे अपने वर्तमान शोध(अनुसंधान) परियोजना के निष्कर्षों का प्रसार कर सकेंगे।पुणे के सम्मेलनों में मिले अनुभवों से प्रेरित हो वे इस कार्यशाला को नीति निर्माताओं के साथ जुड़ने की ज़मीन की भाँति प्रयुक्त करेंगे जिससे कि कचरा बीनने वालों को सामाजिक स्वीकृति व सामाजिक सुरक्षा मिले व नेपाल के औपचारिक कचरा प्रबंधन क्षेत्र में उनका समावेश हो।

 

पुणे सम्मेलन के बाद: चीन .. सच में अदभुत लगा।

ली वेन चेन

चीन से आए प्रतिनिधि को ग्लोबल एलायंस आफ वेस्टपिकर्स का अनुभव 'सच में अदभुत लगा। इस वैशिवक कार्यशाला के माध्यम से व पुणे तथा ब्राज़ील के केस स्टडी के माध्यम से हम पुनर्चक्रण की महत्ता समझे एवं ठोस कचरा प्रबंधन में कचरा बीनने वालों की भूमिका का महत्व भी समझे । हमें न केवल दूसरे देशों के अनुभव पता चले बलिक हमें चीन में, विशेषत: बीजिंग में काम शुरू करने की प्रेरण मिली व कर्इ विचार भी मिले।

'मैं जोकि पर्यावरणीय संरक्षण में लिप्त एक एकिटविस्ट हूँ, कचरा बीनने वालों के संगठित होने की बात से बहुत प्रभावित हूँ। अन्य देशों के ठोस कचरा प्रबंधन प्रणाली से जुडा , किस प्रकार गैर सरकारी संगठन व कचरा बीनने वालों के एकीकरण एवं कचरा प्रबंधन के अभियान चलाते हैं, किस प्रकार कचरा बीनने वालों एवं गैर सरकारी संगठन समेकित ठोस कचरा प्रबंधन के लिए माडल विकसित करते हैं - ये सब ऐसे मु हैं जिनकी संभावनाएँ मेरे देश चीन में खँगाली जानी चाहिए।

जब मैंने चीन के प्रतिनिधि से कचरा बीनने वालों के इस सम्मेलन के बारे में प्रतिकि्रया जाननी चाही तो वे बोले कि वे कचरा बीनने वालों के यूनियन बनाने व एकता उत्पन्न करने की प्रकि्रया के बारे में और भी जानना चाह रहे थे व चीन में ऐसी ही प्रकि्रया आरंभ करने के प्रति आशानिवत थे।

हम सर्वप्रथम बीजिंग में कचरा बीनने वालों के लिए एक संबद्धता आरंभ करने की पहल करना चाहते हैं। बीजिंग में लगभग 200,000 कबीवा हैं और इस शहर की आबादी 20,000,000 के लगभग है। इसके बाद हम उनकी सरकार से बात करेंगे व बीजिंग के कचरा बीनने वालों एवं कचरा प्रबंधन में समावेशिता की बात करेंगे।

 

पुणे सम्मेलन के बाद: चीन: अपने साथ ले जा रहे 4 विचार

युन सुन आर्इए सी ओ,चीन।

कचरा बीनने वालों के संग काम कर रहे चीनी एन जी ओ के प्रतिनिधि के रूप में हम पुणे सम्मेंलन की 4 बातों से बहुत ही प्रभावित हुए हैं-
( 1) भारत,दक्षिण अमरीका व अफ्रीका के कचरा बीनने वाले इतने संगठित हैं कि वे कर्इ पर अपनी आवाज़ उठाते हैं ,जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय कार्बन उत्सर्जन व्यवसाय,पुनर्चक्रण वाले कचरे के समावेशी माडलों की स्थापना, अपने नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष आदि। उनके पास अपने हक माँगने के लिए चुनावों में मत देना ही एकमात्र रास्ता नहीं है।
(2) कचरा बीनने वालों को कानूनी मान्यता प्राप्त है एवं भारत व अन्य देशों में इसे एक व्यवसाय के रूप में स्वीकार किया जाता है। इस कारण कचरा बीनने वाले एन पी ओ या कंपनी की स्थापना कर सकते हैं एवं नगर पालिका या निगम के साथ कचरा संसाधित करने या पुनर्चक्रण करने के व्यवसाय में भागीदारी कर सकते हंै। स्वच्छ की सफलता से यह स्वत: सिद्ध है।
(3) नागरिकों की आजीविका का आधार रोज़गार है ।घरेलू कचरे के पुनर्चक्रण में किसी भी प्रकार के तकनीकी सुधार से कचरा बीनने वालों की रोज़ी रोटी पर कोर्इ उल्लेखनीय कमी नहीं होनी चाहिए। स्वच्छ ने कचरा बीनने वालों के मूलभूत मानवाधिकारों को अपने कार्य का आधार बनाया है।
(4) कार्यशाला में हमें समूह सत्रों के लिए कुछ ऐसी जीवंत तकनीकें पता चली हैं जो अंतकि्र्रया के लिए अति उपयुक्त हैं ,जैसे -ड्रम सर्कल, चित्रकला, शब्दों के खेल इत्यादि। हम चीनी एन जी ओ को ये सारी तकनीकें बताएँगे।

अब चीन में भी कचरा बीनने चालों को कचरा छाँटने व पुनर्चक्रण की अर्थ व्यवस्था में 'कामगारों के रूप में शामिल कर लिया गया है। सरकार व संबंधित विभागों की हर घर से कचरा उठाने की अक्षमता तो उजागर हो गर्इ है अत: अब कचरा एकत्रित करने के छोटे-छोटे केंद्र स्थापित किए जा रहे है। साथ ही कुछ लोग स्वेच्छा से ही कचरा बीनने के एन जी ओ भी स्थापित करने लगे हैं।

ऊपर बताए गए चारों आयाम हमें कचरा बीनने का कार्यक्रम आरंभ करने में मदद करेंगे।।

 

पुणे सम्मेलन के बाद: बांग्ला देश

सुभाष चन्द्र बिस्वास. ए एस डी बंगलादेश

ए एस डी (एसोसिएशन आफ सस्टेनेबल डेवलेपमैंट,बांग्लादेश) एक गैर शासकीय एवं अलाभकारी संगठन है जोकि कचरा बीनने वालों व खेतिहर समुदायों के सशकितकरण हेतु काम करती है। इसने हाल ही में स्वच्छ पुणे की मेज़बानी में एक सप्ताह तक चली बैठकों व घटनाओं की एक शृंखला में भाग लिया जोकि क बी वा के अधिकारों व अंतर्राष्ट्रीय मु से संबंधित थी।

ठोस कचरा प्रबंधन एवं कचरा बीनने वालों को संगठित करने के क्षेत्र में ये लोग नए हैं अत: ए एस डी के इन दो प्रतिनिधियों को पुणे की बैठक व स्वच्छ परियोजना के तहत की गर्इ फील्ड विजि़ट बहुत शिक्षाप्रद लगी। ब्राज़ील व इंडोनेशिया जैसे वैविध्य पूर्ण देशों में तक कचरा बीनने वालों ने किस तरह के पहल किए हैं -इस बारे में उन्होंने जाना। पुणे में हुर्इ अंतकि्र्रया के बाद वे इन म से जूझने में स्वयं को अधिक समर्थ पाते हैं- जैसे- जलवायु परिवर्तन, लैंडफिल के लिए ज़मीन की कमी , जीवन शैली में परिवर्तन और बांग्लादेश के अपने स्थानीय म को समझने की भी दृष्टि पार्इ है।

घर लौटने के बाद इन दोनों प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव ए एस डी बांग्लादेश के परिषद के सदस्यों को बताए और मगुरा नगर पालिका के प्रतिनिधियों को भी बताए जहाँ ए एस डी अपना काम शुरू कर रही है।

जुलार्इ 2012 से शुरू करने के लिए मगुरा नगरपालिका के सहयोग से निम्न. प्रमुख गतिविधियों की योजना बनार्इ गर्इ है-

श्य 1

  • कचरा बीनने वालों एवं गैर सरकारी संगठनों का एक नेटवर्क विकसित हो जो नगर पालिका ठोस कचरा प्रबंधन परियोजना चलाए (खुलना क्षेत्र या डिवीज़़न से शुरू करके) । इसमें निम्न. कार्य होंगे-
  • गतिविधियों की योजना एवं उनके कि्रयान्वयन हेतु स्टाफ व स्वयंसेवकों की भर्ती ।
  • नगर पालिका ठोस कचरा प्रबंधन , कचरा बीनने वालों व सफार्इकर्मियों के संगठनों के साथ मिलकर काम करनेवाले गैर सरकारी संगठनों की सूची बनाना।
  • कचरा बीनने वालोंं व गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विचारों के आदान प्रदान व सहयोग बढ़ाने हेतु बैठकें करना , साथ ही तकनीकी व नेटवर्किंग परामर्श करना।

श्य 2

  • मगुरा नगर पालिका में नगर पालिका ठोस कचरा प्रबंधन की पहल को सशक्त करना।
  • ठोस कचरा प्रबंधन, परियोजना के लिए सभी प्रमुख हितग्राहियो (स्टेकहोल्डर्स)ं व मीडिया के साथ हाइ प्रोफाइल उदघाटन समारोह आयोजिन करना।
  • कचरा बीनने वालों में जागरूकता पैदा करना।
  • हितग्राहियों के साथ केंदि्रत समूह चर्चा आयोजित करना।
  • कचरा बीनने वालों व सफार्इकर्मियों के बच्चों के लिए आवश्यकता आधारित प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा की व्यवस्था करना।
  • कचरा कम करने, उसके पुनरुपयोग करने व पुनर्चक्रण हेतु जागरूकता फैलाना।
  • कचरा बीनने वालों के परिवारों के वयस्कों में वैकलिपक आय ,रोज़गार वाली गतिविधियों का प्रशिक्षण देना ।
  • सुरक्षा सामगि्रयाँ प्रदान करना ।
  • कचरा बीनने वालों के परिवारों के शिशुओं ,सित्रयों व बुजुर्गों को गर्म कपड़े वितरित करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस व विश्व पर्यावरण दिवस मनाना।
  • विकास की मानिटरिंग करना, पुनरीक्षा करना व आगामी वर्ष के लिए गतिविधियों की पुनर्योजना बनाना ।

 

 

पेंशन: एक अधिकार है,कृपा नहीं!

25 फरवरी 2012 को पुणे ने एक ऐसा जन सैलाब देखा जो अरसे से नहीं देखा गया था -असंगठित क्षेत्र के 30,000 कामगार पेंशन परिषद के छत्र के नीचे एकत्रित हुए व उनकी एक सामूहिक माँग थी कि असंगठित क्षेत्र के सभी कामगारों को पेंशन मिले। हम्माल पंचायत द्वारा आयोजित इस परिषद में रिक्शा चालक, कचरा बीनने वालों , घरेलू कामगार ,निर्माण श्रमिक व अन्य ऐसे ही कामगार थे।एक दिन का काम व मज़दूरी स्वेच्छा से छोड़कर महाराष्ट्र के विभिन्न भागों से आए थे,अपना पैसा खर्च करके एक दिन की यात्रा करके ये सभी आए थ कि अपने हक की आवाज़ उठा सकें।

इस सम्मेलन में बोलते हुए बाबा अ ाढव व अरुणा राय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पेंशन उन सारे कामगारों का 'अधिकार है जो समाज को श्रमदान देते हैं व उसकी अर्थव्यवस्था के निर्माण में योगदान करते हैं- वे सरकार या कार्पोरेट क्षेत्र से दया नहीं माँग रहे हैं। बाबा आढव ने घोषणा की कि यह पुणे सम्मेलन तो शुरुआत है, हम अपनी माँगें पूरी होने तक नहीं रुकेंगे। ज़रूरत पड़ने पर यह संघर्ष दिल्ली की सरकार के द्वार तक जाएगा।

और यहीं पर पेंशन परिषद का दूसरा सम्मेलन 1 से 11 मर्इ 2012 तक हुआ जिसमें 22 प्रदेशों से आए 3000 गरीब बुजुर्ग कामगार जंतर मंतर पर परिषद द्वारा आयोजित धरने पर बैठे। पुन: एक बार स्वेच्छा से एक सप्ताह की रोज़ी रोटी छोड़ इस तपती धूप में हज़ारों कि.मी. दूर से आए कि अपनी माँगों की ओर सरकार का ध्यान खींच सकें।इस धरने में भाग लेने के लिए पुणे के हम्माल पंचायत के 100 सदस्य मोटर साइकिलों पर दिल्ली आए। वे पूरे रास्ते अपना प्रचार करते हुए अपने लिए जन सहयोग भी जुटाते रहे।

दिल्ली की पेंशन पंचायत ने भी संबंधित म पर सार्वजनिक सुनवार्इ रखी-जैसे कि -सीमांत व वंचित समूह ,सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा, राष्ट्रीय खाध सुरक्षा विधेयक, जि़म्मेदारी व शिकायत सुनवार्इ विधेयक,एवं इस अभियान को आगे बढ़ाने के उपाय । इनके अलावा भी कुछ म पर चर्चाएँ हुर्इं,जैसे- आदिम आदिवासी समूह, सेक्स वर्कर्स, हिंजड़ा समुदाय, एच आर्इ वी पाजि़टिव जन, -ये लोग जोकि लोगों के सहयोग से पूर्णत: वंचित हैं। इनमें से कुछ समूहों को तो युवावस्था में भी काम नहीं मिला है।इन समूहों को तो उपयुक्त आमदनी का सहारा उन लोगों से भी पहले मिलना चाहिए जिन्हें रोज़गार गारंटी प्रदान की जाती हैं

भारत ऐसा कर (नहीं )सकता हैं!
बेलीविया,लेसोथे, नेपाल व केन्या ऐसे देश हैं जहाँ विशाल जनसंख्या है व वहाँ की अर्थव्यवस्था भारत से कम विकसित है,फिर भी इन सभी देशों में सार्वभौमिक या लगभग सार्वभौमिक वृद्धावस्था पेंशन योजनाएँ चलार्इ जा रही हैं और वह भी बिना किसी अभिदान के !
सार्वभौमिक अनभिदायी वृद्धावस्था पेंशन प्रणाली को 1,92,000 करोड़ रु प्रतिवर्ष चाहिए जोकि कार्पोरेट क्षेत्र को सरकारी बजटों में दी गर्इ छूट की तुलना में लगभग नगण्य हैं कुल व्यय (केंद्र व राज्य सरकार का मिलाकर)कुल राष्ट्रीय उत्पाद का 2.1 प्रतिशत या 2012-2013 के केंद्रीय बजट में दर्शाए गए कुल सरकारी व्यय का 12.9 प्रतिशत ही होगा।

 

हम क्या माँग रहे हैं?
पेंशन परिषद की मुख्य माँगें ये हैं:-

  • सरकार द्वारा अविलंब एक अनभिदायी वृद्धावस्था पेंशन प्रणाली आरंभ की जाए जिसके तहत मासिक पेंशन की न्यूनतम राशि रु 2000 या न्यूनतम पारिश्रमिक ,इसमें से जो भी अधिक हो- उसका 50 प्रतिशत दिया जाए।
  • यह भारत के सभी पात्रता प्राप्त नागरिकों का व्यकितगत अधिकार हो ।
  • वर्ष में दो बार महंगार्इ के आधार पर मासिक पेंशन का सूचकांक तय हो व हर दो वर्ष में उनका उसी प्रकार पुनरीक्षण हो जिस प्रकार सरकारी कर्मचारियों के वेतन व पेंशन का होता है।
  • 55 वर्ष व उनसे अधिक के सभी व्यकित वृद्धावस्था पेंशन के हकदार हों।
  • म्हिलाओं के लिए यह उम्र 50 हो।
  • अत्यधिक वंचित समूहों (जैसे- आदिम आदिवासी समूह, सेक्स वर्कर्स, हिंजड़ा समुदाय,विकलांग व्यकित )के लिए यह उम्र 45 या उनकी विशिष्ट आवश्यकता पर आधारित हो।
  • किसी को भी सार्वभौमिक वृद्धावस्था पेंशन की उम्र के होने पर सेवानिवृत्त होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
  • वृद्धावस्था पेंशन के लिए 'एकल खिड़की व्यवस्था हो।
  • हक न देने के लिए ए पी एल या बी पी एल की सीमा न लागू की जाए।
  • पेंशन का भुगतान करने के कारण अन्य किसी सामाजिक सुरक्षा या कल्याणकारी योजना का लाभ देने से वंचित नहीं किया जाए जोकि जन वितरण प्रणाली के अंतर्गत किया जाता है।

वे व्यकित इन लाभों के हकदार नहीं होंगे जिनकी आमदनी आयकर के थे्रशोल्ड स्तर से अधिक है ,जोकि अन्य स्रोतों से जो पेंशन पा रहे हैं ,वह इस वृद्धावस्था पेंशन कार्यक्रम द्वारा प्रदत्त राशि से अधिक हो।बाक्स

 

आपकी वृद्धि : हमारा श्रम?
2000 से 2010 के बीच संगठित क्षेत्र ने कार्य बल 0.3 प्रतिशत से भी कम कामगार जोड़े हैं जबकि देश का कुल राष्ट्रीय उत्पाद 8 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। यह स्पष्ट है कि इस वृद्धि में अधिकतम योगदान असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का है। उन्होंने ही अधोसंरचना का निर्माण किया , सेवाएँ प्रदान कीं, यह न्याय संगत ही होगा कि उन्हें उस समय पर्याप्त रूप ये क्षतिपूर्ति की जाए जब वे कमाने में असमर्थ हो जाएँ।

Photo credits: Digvijay Singh. Check the gallery of photos.

 

गाजीपुररू में कचरे से ऊर्जा .. लगाने का विरोध।

24 मार्च 2012 को गाजीपुर में 300 से अधिक लोग कचरे से ऊर्जा निर्माण के प्रस्तावित भस्मीकरण संयंत्र के गाजीपुर में लगाने का विरोध करने के लिए गाजीपुर भस्मीकरण संयंत्र विरोधी समिति के तत्वावधान में एकत्रित हुए। समिति का नेतृत्व स्थानीय रहवासी व कचरा बीनने वाले कर रहे थे और विभिन्न संगठन उनका समर्थन कर रहे थे। अखिल भारतीय कबाड़ी मज़दूर महासंघ इनमें से प्रंमुख था जोकि दिल्ली व एन सी आर में कचरा बीनने वालों की यूनियन है।ये प्रतिभागी 1300 टन कचरे का प्रतिदिन ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले संयंत्र को गाजीपुर में लगाने के काम को अविलंब रोकने की माँग कर रहे थे जिसे गाजीपुर के 36 लाख की आबादी वाले घने रहवासी क्षेत्र में लगाया जा रहा है।मीटिंग में प्रमुख वक्ता थे- ंअशीम राय( राष्ट्रीय सचिवए एन टी यू आइ),डा. सुनील पांडे,(टी र्इ आर आइ),संतराम(अध्यक्ष,गाजीपुर रहवासी कल्याण संघ)शिबु नायर(पर्यावरणविद एवं शोधकर्ता,थणल ), शशि भूषण पंडित (सचिव, ए आर्इके एम एम यूनियन)

संतराम(अध्यक्ष,गाजीपुर रहवासी कल्याण संघ) ने कहा- '' हमारी डी डी ए कालोनी,स्कूल एवं एक डेयरी फार्म -सब संयंत्र से केवल 60 फीट की दूरी पर सिथत हैं एवं अनेक स्वसस्थ्य सुविधाएँ भी 1 कि.मी की दूरी पर है।दिल्ली का कचरा जलाने के लिए गाजीपुर में संयंत्र लगाना पर्यावरणीय अपराध है।

कचरा भस्म करने से अनेक प्रदूषक तत्व उत्पन्न होते है जोकि स्वास्थ्य एवं पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक हैं। यह खर्चीला है और म्युनिसिपलिटी के संशिलष्ट रासायनिक कचरे से निकलने वाले लगभग 200ं विषैली उचिछष्टों को न खत्म कर सकती है ,ना ही कम कर सकती है।

थणल पर्यावरण समूह ,केरल के शिबु नायर ने अपनी चिंता प्रगट करते हुए कहा कि-'' विषैले व भारी धातु उचिछष्ट पदार्थों का हमें पता है जोकि भस्मीकरण संयंत्रों से निकलते हैं ।अत्याध्ुनिक भस्मीकरण संयंत्र भी विषैले धातु, डाइ आकिसन, एसिड गैसें बाीर फेंकते हैं।एक लैंडफिल की आवश्यकता को दूर करना जतो दूर ये भस्मीकरण संयंत्र प्रणालियाँ तो और अधिक विषैले उचिछष्ट व राख फेंकते हैं।ओखला, गाजीपुर व बवाना में पहले से ही 3 भस्मीारण संयंत्रों को लगाने के लिए क्रमश: जिंदल,आइ एल एवं एफ एस राम्की कंपनियों को काम दिया जा चुका हे जो मिलकर 8000 टन कचरा जलाएँगे।जब ये काम करने लगेंगी तो 200,000 कचरा बीनने वालों के जीवन को प्रभावित करेंगी जो इस कचरे का प्रतिदिन पुनर्चक्रीकरण करके अपने परिवारों का पेट पालते हैं,यही इनकी आजीविका का एकमात्र साधन है। इन परियोजनाओं से कचरा बीनने वालों की सीधी प्रतिद्वंद्विता है क्योंकि ये भस्मक उसी कचरे को जला डालेंगे जिसका ये पुनर्चक्रण करते हैं।'' भस्मकों के कारण शहरों पर व्यय अधिक आता है जबकि वे अपेक्षाकृत कम रोज़गार देते हैं जोकि समग्र पुनर्चक्रण व कंपोसिटंग की तुलना में कम है। वे पुनर्चक्र पर आधारित स्थानीय उधोग के विकास को रोकते हैं। हम छिदल्ली सरकार की ऐसी विनाशकारी कचरा प्रबंध नीतियों का विरोध करते हैं । इसके बदले हम कचरा प्रबंधन के में कचरा बीनने वालों को औपचारिक रूप से समिमलित करने की माँग करते हैं एवं घर -घर से कचरा एकत्रित करने के परंपरागत तरीके को बनाए रखने की माँग करते हैं जिससे कि शुरू में ही कचरे को छाँटा जा सके, और शहर केंदीकृत सुविधा पर निर्भर रहने से बचाके। यह कहना था शशि भूषण पंडित (सचिव, ए आर्इके एम एम यूनियन) का।

म्युनिसिपल ठोस कचरा नियम(2000) के तहत सामाजिक व प्र्यावरणीय रूप से उपयुक्त अनेक युकितयों का प्रावधान किया गया है मगर सरकार उन सबका समर्थन करती है न उनपर ध्यान देती है।शहरी कचरे का 50 से 60 प्र.श. तो जैविक कचरा होता है।यदि इस जैविक कचरे से निपटने के लिए 'शीत प्रौधोगिकी को अपनाया जाए, जैसेकि- कंपोस्ट खाद बनाना या बायोगैस बनाना, तो आधी समस्या तो दिल्ली के कचरे की यूँ ही हल हो जाए। समेकित वनस्पति पोषक प्रबंधन पर इंटर मिनिस्ट्रीयल टास्क फोर्स ने तो ज्म् की नीति को मान्यता नहीं दी है और पूरे देश में 1000 कंपोस्ट इकाइयाँ लगाने का सुझााव दिया है।, ऐसा दुनु राय ने कहा जोकि आपदा केंद्र के हैं।केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को कचरा बीननो वालों की आजीविका पर मँडराते खतरे की चिंता के साथ ही नागरिकों के स्वसस्थ्य व पर्यावरण दोनों की भी चिंता करनी चाहिए।ओखला, गाजीपुर व नरेला बवाना में प्रस्तावित भस्मक संयंत्रों पर तुरंत प्रभाव से रोक लग जानी चाहिए व ऊँची दरों पर होने वाले कचरा प्रबंधन को भी रोका जाना चाहिए और इनके बदले छोटे पैमाने पर उपयुक्त विधियाँ अपनार्इ जानी चाहिए-जैसे -बायो मिथनेशन, कंपोसिटंग व उचित पुनर्चक्रण।

संकल्प

गाजीपुर भस्मक विरोधी समिति ने इन माँगों के साथ एक संकलप पारित किया-

  1. गाजीपुर भस्मक संयंत्र का काम तुरंत प्रभाव से रोका जाए।
  2. सभी कचरे से ऊर्जा बनाने के संयंत्रों के प्रस्ताव खत्म किए जाएँ।
  3. कचरा प्रबंधन नीति सहभागिता व विकेंद्रीकरण की नीतियों पर आधारित हो जिससे किसी भी एक समुदाय का शहर के कचरे के पास ना रहना पड़े।
  4. कचरा बीनने चालों को अपने में शामिल करने वाली नीतियों को अपनाया जाए व उस पुनर्चक्र करने वाले अनौपचारिक क्ष़्ोत्र को समर्थन व सहयोग दे जो कचरा बीनने वालों को अत्रइसमें शामिल करे।

 

बस्ते को 'हाँ, बोरे को 'नहीं!

KKPKP’s anti-child labour campaign

बच्चों को कचरा बीनते हुए सड़कों पर नहीं,बलिक पाठशाला में होना चाहिए,चाहे उनके घर की दशा कितनी भी दयनीय क्यों ना हो- कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत की यह माँग है ' जबसे 1995 में यह पंचायत बनी ,तबसे। उस समय किए गए एक सर्वेक्षण से यह पता चला कि पुणे में कचरा बीनने वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक है और इनमे से आधे से अधिक के अभिभावक भी कचरा बीनते थे और वे सभी या तो कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत के सदस्य थे या बनने वाले थे।

उस समय इन सदस्यों ने यह शपथ ली थी कि वे अपने बच्चों को पढ़ाएँगे। इन आरंभिक सदस्यों ने बाद में पंजीकृत सदस्यों को भी बच्चों को स्कूल भेजने के बारे में समझाइश दी।संदेश स्पष्ट था -'' हमारे बच्चों को कमाने नहीं , सीखने दो। परिणाम संतोषजनक रहे। 1998 तक पुणे में कचरा बीनने वाले बच्चों की संख्या आधी रह गर्इ और कागज़ कच पतरा कष्टकरी पंचायत के बच्चे केवल 1 : ।

कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत द्वारा 23 अप्रैल को आयोजित समारोह में बाल श्रम समाप्त करने एवं शिक्षा द्वारा कचरा बीनने वाले बच्चों के जीवन में सुधार का संकल्प स्पष्ट दिखा। यह समारोह बाल श्रम विरोध दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित था व इस कुप्रथा के विरुद्ध पुन: एक सशक्त अभियान शुरू करने का आहवान था । प्रथम चरण में यह अभियान कबाडि़यों के विरुद्ध केंदि्रत होगा व उन्हें अवयस्क कचरा बीनने वाले बच्चों से कचरा खरीदने से रोकेगा। कागज़ कच पतरा कष्टकरी पंचायत का कहना है कि भले ही हमारे संगठन के सदस्यों के बच्चों में कमी आर्इ है मगर शहर में अभी भी अनेक बच्चे कचरा बीन रहे हैं व सरकार तथा समाज -दोनों को इस सच्चार्इ से अवगत कराना ही होगा। बालश्रम के विरुद्ध अभियान व कचरा बीनने वाले बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन देना- इन दोनों अभियानों के संयोग का परिणाम यह रहा कि इस आयोजन में 460 सदस्यों के बच्चों को जीवन बीमा निगम के 'शिक्षा सहयोग योजना के अंतर्गत छात्रवृतित मिली। ये सारी छात्रवृतितयाँ 8वीं से 12 वीें तक के विधार्थियों के लिए थीं अत: इनके अभिभावकों को भी सम्मानित किया गया कि तमाम प्रतिकूल परिसिथतियों में भी वे बच्चों को पढ़ाते रहे। इस अवसर पर बोलते हुए अनुभवी बुजुर्ग नेता बाबा आढव ने इस बात को रेखांकित किया कि बाल श्रम विरोधी अभियान का नेतृत्व करने के लिए यही बच्चे व इनके अभिभावक सर्वाधिक आदर्श व्यकित थे क्योंकि इन्होने शिक्षा के कारण अपना भविष्य सँवरते देखा है।

इसके बाद कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत के सदस्यों,उनके बच्चों, पुणे के नागरिकों व एकिटविस्टों ने बालश्रम उन्मूलन की शपथ ली।

इसके बाद कागज़ कच पतरा कष्टकरी पंचायत के सदस्यों व उनके बच्चो ने अपने अनुभव सुनाए व स्कूली शिक्षा के सामान्य से लक्ष्य को पाने के रास्तें में आर्इ कठिनाइयों का भी वर्णन किया। प्रवेश दिलाने, छात्रवृतित बाँटने ,पढ़वाने ,स्कूल छोड़कर न भाग जाएँ-इस पर निरंतर नज़र रखने आदि में कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत के सकि्रय सहयोग की प्रशंसा भी सरल शब्दों में मगर âदयसे की गर्इ।

बाद में बच्चों ने रोमांचकारी मलखंब प्रदर्शन किया। कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत सदस्यों के बच्चों के लिए टेक महेंद्रा ने 10 कंप्यूटर देने की घोषणा की।

बालश्रम विरोधी अभियान चलानेवाले समझते हैं कि कचरा बीनने के घुमंतू व्यवसाय में किसी एक व्यकित पर बच्चों की नियुकित का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। अधिकांश बच्चे अप्रवासियों के हैं जिनका कोर्इ स्थायी पता नहीं होता है अत: इस शृंखला की भिन्न कडि़यों पर हस्तक्षेप करने की योजना बनार्इ गर्इ है-जिसमें पहला कदम होगा कबाडि़यों को अवयस्क कचरा बीनने वालों बच्चों की नियुकित करने व उनसे कचरा खरीदने से रोकना।

कागज़ कांच पतरा कष्टकरी पंचायत को आशा है कि शासकीय इकाइयाँ वर्तमान नियमों व कानूनों को लागू करेगी व उन्हें प्रदान की गर्इ राशि को इन बच्चों को स्कूल में बनाए रखने में उपयुक्त तरीके से खर्च करेगी व उचित सहयोग देगी व यह बच्चे सड़कों पर ना आएँ ,इस बात की मानिटरि्रग करती रहेगी।

अंतत: ' दोषियों को सज़ा देने की वर्तमान प्रवृतित से हटकर हमें उन कारकों को हटाना होगा जो ऐसी दशाएँ उत्पन्न करते हैं।

तब तक कागज़ कच पतरा कष्टकरी पंचायत के बच्चों के साथ आइए व कहिए कि ''स्कूली बस्ते को 'हाँ बोरों को 'ना!

 

यूरोप में भारतीय कचरा बीनने वाले अपनी दशा बताते हुए--

धर्मेश शाह, GAIA चेन्नई

शून्य कचरा व दोहरे मापदंडमर्इ 2012 में भारतीय कचरा बीनने वालों के लिए नीति संबंधी महत्ता रखने वाली दो महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय बैठकें हुर्इं। स्पेन में शून्य कचरा (ज़ीरो वेस्ट) के अधिवेशन में और ब्रुसेल्स के यूरोपियन संसद में र्इ यू डबल स्टैंडर्डस रिपोर्ट के विमोचन पर स्वच्छ की रेबेका केदारी व मालती बलिवंत ने और ग्लोबल एलायंस फार इंसिनेटर आल्टरनेटिव्स ( जी ए आर्इ ए) के धर्मेश शाह ने भारतीय कचरा बीनने वालों का पक्ष रखा। प्रतिनिधियों ने न्यून पूँजी केंदि्रत व अधिक जनकेंदि्रत कचरा प्रबंधन के माडलों का पक्ष लिया जिसमें भस्मीकरण या कचरा जलाने की बजाय पुनर्चक्रण पर अधिक ज़ोर दिया ।'शून्य कचरा अधिवेशन में यूरोप में सफलतापूर्वक चल रहे कर्इ दर्जन 'शून्य कचरा परियोजनाओं की सफलता पर प्रकाश डाला गया। 300 से अधिक प्रतिभागियों ने मिलकर यूरोप में 'शून्य कचरा आंदोलन के लिए भविष्य में उठाए जानेवाले कदमों की व सर्वोत्तम प्रणालियों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। स्पेन के बास्क कंट्री में सिथत उसुरबिल व हेरनानि के सफल 'शून्य कचरा परियोजनाओं का अवलोकन किया गया। प्रायद्वीप में उदगम पर ही कचरा छाँटने के ये दोनों सबसे विशाल केंद्र यहाँ की नगरपालिकाएँ संचालित करती हैं।

हेरनानि नगरपालिका द्वारा अपनाए गए माडल का आधारभूत लक्ष्य है-उदगम से ही कचरे की छँटनी करना- इस बात ने तुरंत ही स्वच्छ की रेबेका को प्रभावित किया-पुणे के स्वच्छ के सदस्य भी स्रोत पर ही अधिकतम छँटनी के पक्षधर हैं।

इस योजना के सबसे प्रभावशाली आयाम है - बाल्टी व हुक प्रणाली! इसे नागरिकों का भारी प्रतिसाद मिला। इस प्रणाली के तहत हर घर को दो हुक दिए जाते हैं। ये हुक पूरे शहर में अनेक इस्पात के खंभों पर लगे होते हैं।इन हुकों से एक छोटी बाल्टी टँगी रहती है जोकि जैविक कचरे के लिए है व एक थैली है जोकि पुनर्चक्रण योग्य कचरा डालने के लिए है। अलग-अलग दिन अलग पुनर्चक्रण योग्य कचरा एकत्रित किया जाता है, सिवा बच्चों के डायपर व अन्य स्वच्छता संबंधी उत्पादों के ,जोकि प्रतिदिन इकटठे किए जाते हैं। पिछले एक वर्ष में इस प्रणाली के कारण 85 प्रतिशत जैविक व पुनर्चक्रण योग्य कचरा लैंडफिल में जाने से बचा। इतालवी व स्पेनिश नगरनिगमों से इस प्रकार काफी बड़े अनुपात में जैविक व पुनर्चक्रण योग्य कचरे को अलग करने की कहानियाँ सुनने में आर्इं।

'दोहरे मानदंडों पर ब्रुसेल्स यूरोपियन संसद में हुर्इ बातचीत का लक्ष्य था संसद सदस्यों को 'स्वच्छ विकास तंत्र(सी डी एम -क्लीन डेवलैपमेंट मैकेनिज़्म ) द्वारा प्रायोजित भस्मकों व लैंडफिल बैस परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न कार्बन क्रेडिट लेने से रोकने की प्रार्थना करना। इस परियोजना का पर्यावरण व कचरा बीनने वालों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, फिर भी दूषित उत्सर्जन में कमी का बहाना बताकर इन परियोजनाओं को अवांछित सबिसड़ी दी जा रही है।

 

'स्वच्छ की टीम ने सांसदों को संबोधित करते हुए कहा कि सी डी एम क्रेडिट पाने के लालच में भस्मक परियोजनाओं के कि्रयान्वयन हेतु पहाड़ सी रुकावटें भी दूर कर ले रही है ,मगर यही लोग पुनर्चक्रण के समर्थन में एक छोटी सी भी सहायता करने हेतु तैयार नहीं हैं जबकि इसके दूरगामी सुपरिणाम मिलेंगे।

सांसदों से रेबेका ने आग्रह किया कि वे वैशिवक संप्रेक्ष्य में कचरा बीनने वालों के योगदान को देखें । सबिसडी वितरण में अधिक समता की आवश्यकता पर भी ज़ोर

उन्होंने ज़ोर दिया- कि उनका तर्क था कि कचरा जलाकर पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुँचाने वालों की बजाय पुनर्चक्रण करने वालो को अधिक प्रोत्साहन पुर स्कार दिए जाएँ।

जी ए आर्इ ए के धर्मेश शाह ने भारत की कुछ सी डी एमों के पर्यावरणीय प्रभावों पर प्रकाश डाला। तिमरपुर -ओखला और गोरर्इ डंपिंग ग्राउंड ज ैसी परियोजनाओं से यह सिद्ध हो चुका है कि उनका जलवायु व स्थानीय पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ,फिर भी पुनर्नव्य ऊर्जा की आड़ में सी डी एम द्वारा मान्य विषैली प्रौधोगिकियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। ये परियोजना एक विकृत( असंगत) प्रोत्साहन के आधार पर कार्यरत है कि हम जितना उत्सर्जन करेंगे ,उतना ही हमें अधिक धन मिलेगा, भले ही इससे सी डी एम के आधार पर ही कुठाराघात हो रहा हो। जी ए आर्इ ए की मेरियन विलेला ने अपने उदघटन प्रस्तुति में सी डी एम समर्थित कचरा परियोजना की प्रमुख चुनौतियों पर एक समग्र चित्र प्रस्तुत किया । उन्होंने यूरोपीय संसद के सदस्य राष्ट्रों की इस दोहरी नीति को उजागर किया जिसके तहत वे अपनी भूमि पर अवैध माने जाने वाली परियोजनाओं से दूसरे देशों में उत्पन्न कार्बन क्रेडिट खरीद रहे हैं । यूरोपीय संसद ने तो कचरा उन्मूलन की शृंखला में भस्मीकरण को अंतिम विकल्प माना है ,यह महत्वपूर्ण है कि यही परंपरा विकासशील देशों में भी प्रोत्साहित की जाए।

श्री राउल रोमेवा ने ,जोकि प्रमुख मेज़बान थे , अन्य सांसदों के साथ मिलकर यह वादा किया कि वे यूरोपीय समुदाय के साथ इस म पर आगे विचार करेंगे । यूरोपीय कमीशन के एक प्रतिनिधि ने एक प्रस्तुति भी दी

 

 

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